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Founder / संस्थापक

स्व: डॉ पृथ्वी सिंह विकसित

    डॉ0 पृथ्वी सिंह ‘विकसित’ का जन्म 1932 में ग्राम-तेलीवाला उर्फ शिवदासपुर में जो घाड़ क्षेत्र का पिछड़ा हुआ गांव था सामान्य कृषक परिवार में हुआ जहां पर शिक्षा का कोई स्थान ही नहीं था न कोई पाठशाला थी न कोई पढ़ने का साधन था जिस कारण निकट के ग्राम-गढ़मीरपुर में जो लेखक का जन्म स्थान है प्राईमरी पाठशाला में वह नित्य प्रति कई मील पैदल जाकर पढ़ते थे और वहां से प्राईमरी कक्षा पास करने के पश्चात् बहादराबाद में कई मील पैदल चलकर शिक्षा प्राप्त करने जाते थे किन्तु वह क्रम अधिक नहीं चला और उन्होनें के0एल0डी0ए0वी0 स्कूल, रुड़की में प्रवेश लिया जहाँ से उन्होंने और लेखक ने साथ-साथ अध्ययन करते हुए 1951 में हाईस्कूल, 1953 में इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा प्राप्त की तत्पश्चात लेखक ने आगरा वि0वि0 के प्रसिद्धमेरठ कॉलेज मेरठ में शिक्षा हेतु प्रवेश लिया और विकसित जी अध्ययन छोड़ अध्यापन के कार्य में प्रवृत्त हुए जहां पर उनके जीवन का अति महत्वपूर्ण मोड उपस्थित हुआ। धनौरी में गंगनहर के पश्चिम की और सेना की पुरानी बैरकों में तत्कालीन श्री तेलूराम एम0एल0सी0 और श्री जे0एन0 सिन्हा के प्रयासों से प्राईमरी स्कूल व जूनियर हाईस्कूल की स्थापना हुई इन संस्थाओं में अध्यापन करते हुए श्री विकसित जी ने अथक परिश्रम करते हुए विद्यालय के विकास में दिन-रात एक कर दिया जिसके परिणामस्वरूप संस्था हाईस्कूल व नेशनल इण्टर कॉलेज, धनौरी के रूप में गंगनहर के पूर्व की ओर स्थापित हुई, जिसमें श्री पृथ्वी सिंह प्रधानाचार्य के रूप में कार्य करने लगे यह समय उनके संघर्ष पूर्ण जीवन का एक स्मरणीय अध्याय है। यहां पर उनका जीवन स्वयं अनुशासित होते हुए अपने छात्रों को भी कठोर अनुशासन में रखने का रहा यहां तक की यदि किसी छात्र के अव्यवस्थित बाल होते थे तो वह विद्यालय में ही नाई को बुलवाकर उस छात्र के बाल कटवाते थे। इतना ही नहीं बल्कि परीक्षा निकट आने पर रात्री में छात्रों की विशेष कक्षाएं लगाते थे। स्वयं कम्बल ओढ़कर बिना बताये बच्चों के बीच छात्र के रूप में पुस्तक लेकर बैठ जाते थे। यदि कोई छात्र बीड़ी आदि व्यसन करता पाया जाता था तो वे तत्काल उठकर उसे कठोर दण्ड देते थे। अध्यापक रहते हुए डॉ0 पृथ्वी सिंह ‘विकसित’ जी ने प्राईवेट रूप में बी0ए0 की परीक्षा मेरठ कॉलेज में लेखक के साथ ही उत्तीर्ण की और तत्पश्चात् एम0ए0 और फिर गुरूकुल कांगड़ी वि0वि0 से पी0एच0डी0 की डिग्री प्राप्त की। विद्यालय के प्रारम्भिक काल से लेखक उनसे जुड़ा रहा। 14-15 वर्षों तक प्रबन्ध समिति में उपाध्यक्ष के रूप में रहा और अध्यापकों की नियुक्ति के साक्षात्कार में निरन्तर सक्रिय भाग लिया ।

डॉ0 पृथ्वी सिंह ‘विकसित’ और लेखक दोनों ही महर्षि दयानन्द और उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज से जुड़े रहे और उनके साहित्य का अध्ययन करते रहे यूं तो श्री पृथ्वी सिंह के अनेक प्रसंग लेखक के मानसपटल पर अंकित है जिनमें से कतिपय महत्वपूर्ण प्रसंग देना ही समाचीन होगा। 1951 में रुड़की आर्य समाज में जो महर्षि दयानन्द के द्वारा स्थापित विश्व की तीसरी आर्य समाज है योग और मल्ल विद्या के विशेषज्ञ प्रो0 रमेश चन्द आये जिनसे पृथ्वी सिंह व लेखक और भीष्म गिरि गोस्वामी ने योग का क्रियात्मक शिक्षण प्राप्त किया और रुड़की वि0वि0 के मुख्य भवन के समक्ष योगासन का प्रदर्शन भी किया। यहां यह लिखना भी उल्लेखनीय है उसी स्थान पर प्रो0 रमेश चन्द ने अपने दोनों हाथों में रस्से बांध कर दोनों और जीपों में बधवायें और प्राणायाम के बल से दोनों जीपों को स्टार्ट कराकर उन्हें अपने योग बल से रोक दिया था।

गुरूकुल महाविद्यालय ज्वालापुर के आचार्य लक्ष्मी नारायण चतुर्वेदी रुड़की आर्य समाज में पुरोहित के रूप में रहते थे और डी0ए0वी0 कॉलेज और आर्य कन्या पाठशाला कॉलेज में संस्कृत का अध्यापन कराते थे उनके चरणों में बैठकर भाई पृथ्वी सिंह और लेखक ने संस्कृत का शिक्षण प्राप्त किया । जिनके संस्कार दृढ़ होने पर लेखक ने संस्कृत में एम0ए0 उत्तीर्ण किया । व्यवसाय की दृष्टि से श्री पृथ्वी सिंह शिक्षक के रूप में रहे और लेखक एडवोकेट के रूप में कार्य करने लगा। किन्तु हम दोनों की सामाजिक और धार्मिक गतिविधियां समान रूप से चलती रही।

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